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The twin pronouncements of Swarnim M.P. and Apna Pradesh are too abstract and highly abstruse for a common man. It calls for an analysis and begs an elaboration...
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Regional Diaries  

पिछले सताईस वर्षों से अपने दिवंगत पिता को स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी का दर्जा दिलाने की जद्दोजहद में जुटे है गोपाल भुजबल ....
अनंत माहेश्वरी खंडवा [ म.प्र.]

कभी स्वतन्त्रता संग्राम की लडाई लड़ने वाले रघुनाथ भुजबल ने कभी यह नही सोचा होगा की उसे स्वतन्त्रता सेनानी का दर्जा पाने की लडाई भी लड़नी पडेगी . इस लडाई को लड़ते-लड़ते तीस अगस्त सन दो हजार दो में उनकी मौत हो गई . पिता की मौत के बाद उन्हें सम्मान दिलाने की लडाई उनके पुत्र गोपाल भुजबल लड़ रहे है.

इसके लिए उन्होंने प्रदेश सरकार से लेकर जिला स्तर तक लिखा पड़ी की पर कुछ हासिल नही हुआ . . आज भी सरकारी दफ्तरों के चक्कर इस उम्मीद में काट रहे है की उनके पिता को वह सम्मान दिला सके जिसके वो हकदार थे .

आठ जनवरी उननीस सौ अठारह को बुरहानपुर में जन्मे रघुनाथ भुजबल {सोनी} दस साल की उम्र में ही खंडवा आकर अपनी बहन रमा बाई पासे के घर आकर रहने लगे . यहा रहते हुए उन्होंने पदाई पुरी की और ब्रिटिश सरकार की सी.आई.डी में हवलदार पद पर नौकरी की . नौकरी में रहते हुए वे गुप्त रूप से स्वतन्त्रता सेनानियों की मदद किया करते रहे . सन १९३२ में महात्मा गांधी के आन्दोलन को समर्थन देने के आरोप में रघुनाथ सोनी गिरफ्तार किए जहाँ से वे फरार हो गये . जिसका जिक्र "पूर्व निमाड़ जिले के स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी" नामक पुस्तक में है जिसे जिले के प्रख्यात स्वतन्त्रता सेनानी डा. सिद्धनाथ आगरकर ने लिखा है . ब्रिटिश काल में जिस अफसर के माह्तत रहे उन्होंने भी अपने पत्र में लिखा की इन्होने पुलिस प्रशासन से त्यागपत्र देकर भारतीय स्वाधीनता संग्राम में भाग लिया . इसे ढेरो पत्र गोपाल भुजबल के पास है जिन्हें मान्य स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों ने लिखा . मद्य प्रदेश के पूर्व मुख्मंत्री भगवंतराव मंडलोई जो की ख़ुद स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी थे ने भी अपने पत्र में लिखा की रघुनाथ भुजबल ने पुलिस प्रशासन से त्यागपत्र देकर आन्दोलन में हिस्सा लिया .

सन १९६५ को इलाहबाद में हुए स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी महासम्मेलन में इंदिरा गांधी ने मैडल देकर रघुनाथ सोनी को सम्मानित किया . फ़िर भी उन्हें स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी का दर्जा इसलिए नही मिल सका क्योकि उनका जेल रिकार्ड नही था . होता भी कैसे वे पकडे जाने के बाद फरार हो गये थे . उस वक्त मध्य परदेश की राजधानी विदर्भ नागपुर हुआ करती थी . इसलिए पुलिस की नौकरी का रिकार्ड भी नही मिला सका . रही बात स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों के पत्रों की .जो रघुनाथ भुजबल को स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी होना प्रमाणित करते है ..

सरकार उसे प्रमाणिक तथ्य नही मानती .. इन सभी दस्तावेजों के आधार पर गोपाल भुजबल ने प्रदेश सरकार से लेकर जिले के आला अधिकारियों ,नेताओं से मुलाक़ात की सभी ने सिर्फ़ आश्वासन दिया . पर वह सम्मान नही दिया जिसकी लडाई पिछले सताईस सालों से गोपाल लड़ रहे है . वे आज भी अपनी लडाई जारी रखे हुए है की कभी तो उनके दिवंगत पिता को वह सम्मान मिलेगा जिसे पाने के वे हकदार थे ...
 
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