संपादकीय : सरदार सरोवर परियोजना के विस्थापितों से न्याय
नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बांध का निर्माण शुरू हुए साढ़े तीन दशक गुजर चुके हैं। यह सचमुच अफसोसनाक है कि उस परियोजना के विस्थापितों के पुनर्वास का मामला अब तक लटका हुआ है। वजहें कई रहीं। एक तो इस परियोजना के पहले तक अपने देश में विस्थापितों के पुनर्वास को लेकर उचित संवेदनशीलता नहीं थी। फिर यह परियोजना अंतरराज्यीय थी, जिससे केंद्र एवं खासकर गुजरात और मध्य प्रदेश की सरकारों के बीच तालमेल की आवश्यकता पड़ती रही। ऊपर से ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन के नेतृत्व में विस्थापितों ने नई पुनर्वास नीति अपनाए जाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। इसके परिणामस्वरूप गुजरात में जमीन के बदले जमीन देने की शर्त पुनर्वास नीति में जोड़ी गई। लेकिन व्यवहार में हजारों विस्थापित परिवारों को अपेक्षित माप में भूमि उपलब्ध कराना लगभग असंभव बना रहा। जबकि बड़ी संख्या में विस्थापित वैकल्पिक जमीन की मांग करते हुए नकद मुआवजा लेने से इनकार करते रहे। अनेक प्रभावित परिवारों ने नकद मुआवजा लेने के बावजूद अपनी जमीन नहीं छोड़ी। इस कारण सरदार सरोवर बांध का उसकी पूरी क्षमता के मुताबिक इस्तेमाल नहीं पा रहा है।
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