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कल्पेश याग्निक का कॉलम: 2000 आरोपी, 35 केस, 634 मेडिको बाहर, 9 भर्तियों-परीक्षाओं में घाेटाला, 27 लाशें- किन्तु सरकार को खरोंच तक नहीं – क्यों?

“देशभर में मध्यप्रदेश के डॉक्टर अपना परिचय देते समय ‘प्री-व्यापमं’ या ‘पोस्ट व्यापमं’ जोड़ देते हैं! इतना गंभीर मज़ाक पहले नहीं सुना।”- अज्ञात

देश के इतिहास में यह पहली ही घटना है। एक साथ 634 मेडिकल छात्रों की एमबीबीएस प्रवेश और डिग्री रद्द कर दी गई। इनमें 300 के लगभग तो डॉक्टर बन चुके थे। किसी को सरकारी नौकरी भी मिल गई थी!


कानून का क्या तर्क दें?


स्पष्ट है, बचाव का कोई रास्ता न था। तो वही किया। उच्च स्तर के, विद्वान वकीलों ने कहा, कि कानून की बाध्यताओं को न देखा जाए।
संविधान ने धारा 142 बनाई है। जिसके अंतर्गत असीमित अधिकार दिए गए हैं सुप्रीम कोर्ट को। कि ‘पूर्ण न्याय’ के जब अन्य कानूनी रास्ते बंद हो जाएं – तो इस धारा के अंतर्गत “पूर्ण न्याय” किया जाए।


अर्थात् भ्रष्ट तरीकों से डॉक्टर बन रहे और बन चुके डॉक्टरों की परीक्षा और डिग्री बरकरार रखी जाए।
क्योंकि, उन्होंने “नॉलेज” प्राप्त किया है।
क्योंकि, उन्होंने “पांच वर्ष तक पढ़ाई की” है।
क्योंकि, भले ही उनके “नॉलेज” प्राप्त करने का तरीका ग़लत या धोखे वाला था – किन्तु उनका ‘नॉलेज’ ग़लत या धोखे वाला नहीं है!
जी हां, सुप्रीम कोर्ट के 87 पन्नों के फैसले का एक साधारण भारतीय नागरिक के रूप में अध्ययन करने पर मैंने यही पाया।
यही सब लिखा है उस फैसले में। और यह भी लिखा है कि बचाव पक्ष ने पिछले वर्ष मई में सुप्रीम कोर्ट की डिविज़न बैंच के फैसले में दोनों जज के अलग-अलग विचारों में से जस्टिस चेलमेश्वर के कथन को आगे बढ़ाया।

जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा था कि छात्रों में ‘नॉलेज’ प्राप्त कर लिया है, इसलिए इनकी ट्रेनिंग का फायदा समाज को मिलना चाहिए। वे पांच वर्ष तक समाज के लिए काम करें। उन्होंने फौज में सेवाएं देने का सोच बताया था। जबकि जस्टिस सप्रे ने कहा था कि ग़लत तरीकों से ली गई परीक्षा रद्द होगी, इसलिए परीक्षार्थी भी स्वत: रद्द माने जाएंगे। चूंकि मामला सामूहिक धोखाधड़ी से प्रवेश पाने का है, इसलिए टेक्निकल कारणों से ‘बराबरी’ का न्यायिक सिद्धांत (इक्विटिबल रिलीफ़) लागू नहीं हो सकता। और, मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने 634 छात्रों की परीक्षा रद्द कर ठीक किया है।
इस पर चीफ़ जस्टिस जीएस खेहर की अध्यक्षता वाली 3 सदस्यीय पीठ ने यह मामला अंतिम फैसले के लिए अपने पास ले लिया था।

पूर्ण संपादकीय पढ़ने के लिए क्लिक करें http://www.bhaskar.com/news/ABH-kalpesh-yaginik-column-news-hindi-5531295-NOR.html

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